Sunday 23 October 2016

जड़ों की औकात

अपनी सघनता और विशालता से इतराये वट वृक्ष ने
देखते हुये नफरत से
उतार दी अपनी कुछ लटें भूमि में
जानने को जड़ों की औकात
वहाँ फैला था उसकी ही जड़ों का जाल
उसी की सघनता सा विशाल क्षेत्र में
वे जड़ें तो थीं पर थीं पूर्ण चैतन्य
वे जकड़ी हुई थीं भूमि से और
कर रही थीं प्रदान सम्बल उस वृक्ष को
सोख कर भूमि से पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थी ऊर्ध्व भाग को
बनाये रखने को उसे हरा-भरा
वे लटें भी बन गई थीं जड़ें
गहरे समा गई थीं भूमि में
वे भी खींच कर जमीन से नमी व पोषक तत्व
पहुँचा रहीं थीं अपने बाह्य भाग को
जो बन गये थे स्वतंत्र वृक्ष
पता नहीं उस वृक्ष को
अभी भी नहीं समझ आयी थी जड़ों की औकात

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Friday 7 October 2016

गंजे को नख मत दे भगवान

गंजे को नख मत दे भगवान,
खोंटते खोंटते सिर, अपना हो जायेगा लहू लुहान।
       उद्दमहीन अनायास जब,
       कुछ पा जाते हैं।
       नहीं सोच पाते हें सदुपयोग,
       सिर अपना खुजलाते हैं।
खुजलाते खुजलाते सिर अपना,
हो जाते हैं हैरान................... गंजे को............ ।
        करके ही अपने सिर की नोंच खसोट,
        कचोट अडौस-पड़ौस में करते हैं।
        करने लगते हैं तंग समाज को,
        नहीं तनिक भी डरते हैं।
दुःखदायी हो जाते हैं,
गिरे पड़े जब पा जाते हैं अधिमान............ गंजे को.....।
         जो सत्ता में आ जाते हैं हनक से उसकी,
         पगला जाते हैं।
         लगते हैं लूटने सम्पत्ति देश की,
         अपने घर लाते हैं।
भूलकर देश और समाज की सेवा,
हो जाते हैं बे-ईमान................... गंजे को............ ।
          राजनीति में आकर भूखे,
          अफरा जाते हैं।
          पी जाते हैं तेल देश का,
          चारा भैंसों का खा जाते हैं।
कल के महान छील रहे आलू जेल में,
समय बड़ा बलवान................... गंजे को............ । 

जयन्ती प्रसाद शर्मा